Tantralok Sadhna In hindi

तांत्रोत्क श्री-विद्या-साधना

एक बार पराम्बा पार्वती ने भगवान शिव
से कहा कि आपके द्वारा प्रकाशित तंत्रशास्त्र की साधना से मनुष्य समस्त
आधि-व्याधि, शोक-संताप, दीनता-हीनता से मुक्त हो जायेगा। किंतु सांसारिक सुख, ऐश्वर्य, उन्नति, समृद्धि के साथ जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति कैसे प्राप्तहो इसका कोई उपाय बताईये।
भगवती पार्वती के अनुरोध पर कल्याणकारी शिव ने श्रीविद्या साधना प्रणाली को प्रकट किया।
श्रीविद्या साधना भारतवर्ष की परम रहस्यमयी सर्वोत्कृष्ट साधना प्रणाली
मानी जाती है। ज्ञान, भक्ति, योग, कर्म
आदि समस्त साधना प्रणालियों का
समुच्चय (सम्मिलित रूप) ही श्रीविद्या-
साधना है। श्रीविद्या साधना की प्रमाणिकता एवं प्राचीनता जिस प्रकार अपौरूषेय वेदों की प्रमाणिकता है उसी प्रकार शिव प्रोक्त होने से आगमशास्त्र (तंत्र) की भी प्रमाणिकता है। सूत्ररूप (सूक्ष्म रूप) में वेदों में, एवं विशद्रूप से तंत्र-शास्त्रों में श्रीविद्या साधना का विवेचन है।
शास्त्रों में श्रीविद्या के बारह उपासक
बताये गये है- मनु, चन्द्र, कुबेर, लोपामुद्रा,
मन्मथ, अगस्त्य अग्नि, सूर्य, इन्द्र, स्कन्द,
शिव और दुर्वासा ये श्रीविद्या के
द्वादश उपासक है। श्रीविद्या के उपासक आचार्यो में दत्तात्रय, परशुराम, ऋषि अगस्त, दुर्वासा, आचार्य गौडपाद, आदिशंकराचार्य, पुण्यानंद नाथ, अमृतानन्द नाथ, भास्कराय, उमानन्द नाथ प्रमुख है।
इस प्रकार श्रीविद्या का अनुष्ठान चार
भगवत् अवतारों दत्तात्रय, श्री परशुराम,
भगवान ह्यग्रीव और आद्यशंकराचार्य ने
किया है। श्रीविद्या साक्षात्ब्रह्मविद्या है।
श्रीविद्या साधनासमस्त ब्रह्मांड प्रकारान्तर से शक्ति का ही रूपान्तरण है। सारे जीव-निर्जीव, दृश्य-अदृश्य, चल-अचल पदार्थो और उनके समस्तक्रिया कलापों के मूल में शक्ति ही है।शक्ति ही उत्पत्ति, संचालन और संहार का मूलाधार है।
जन्म से लेकर मरण तक सभी छोटे-बड़े कार्योके मूल में शक्ति ही होती है। शक्ति की आवश्यक मात्रा और उचित उपयोग ही मानव जीवन में सफलता का निर्धारण
करती है, इसलिए शक्ति का अर्जन और
उसकी वृद्धि ही मानव की मूल कामना
होती है। धन, सम्पत्ति, समृद्धि,राजसत्ता, बुद्धि बल, शारीरिक बल,अच्छा स्वास्थ्य, बौद्धिक क्षमता, नैतृत्वक्षमता आदि ये सब शक्ति के ही विभिन्नरूप है। इन में असन्तुलन होने पर अथवा किसी एक की अतिशय वृद्धि मनुष्य के विनाश का कारण बनती है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है कि शक्ति की प्राप्ति पूर्णता का प्रतीक नहीं है, वरन् शक्ति का सन्तुलित मात्रा में होना ही पूर्णता है। शक्ति का सन्तुलन विकास का मार्गप्रशस्त करता है। वहीं इसका असंतुलन विनाश का कारण बनता है। समस्त प्रकृति पूर्णता और सन्तुलन के सिद्धांत पर कार्य करती है।
मनुष्य के पास प्रचुर मात्र में केवल धन ही हो तो वह धीरे-धीरे विकारों का शिकार
होकर वह ऐसे कार्यों में लग जायेगा जो
उसके विनाश का कारण बनेगें। इसी प्रकार यदि मनुष्य के पास केवल ज्ञान हो तो वह केवल चिन्तन और विचारों में उलझकर योजनाएं बनाता रहेगा। साधनों के अभाव में योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं हो पायेगा। यदि मनुष्य में असिमित शक्ति हो तो वह अपराधी या राक्षसी प्रवृत्ति का हो जायेगा। इसका परिणाम विनाश
ही है।जीवन के विकास और उसे सुन्दर बनाने केलिये धन-ज्ञान और शक्ति के बीच संतुलन आवश्यक है। श्रीविद्या-साधना वही कार्य करती है, श्रीविद्या-साधना मनुष्य को तीनों शक्तियों की संतुलित मात्रा
प्रदान करती है और उसके लोक परलोक
दोनों सुधारती है।
जब मनुष्य में शक्ति संतुलन होता है तो उसके विचार पूर्णतः पॉजिटिव (सकारात्मक,धनात्मक) होते है। जिससे प्रेरित कर्म शुभहोते है और शुभ कर्म ही मानव के लोक-लोकान्तरों को निर्धारित करते है तथा मनुष्य सारे भौतिक सुखों को भोगता हुआ मोक्ष प्राप्त करता है।
श्रीविद्या-साधना ही एक मात्र ऐसी साधना है जो मनुष्य के जीवन में संतुलन स्थापित करती है। अन्य सारी साधनाएं असंतुलित या एक तरफा शक्ति प्रदान करती है। इसलिए कई तरह की साधनाओं
को करने के बाद भी हमें साधकों में न्यूनता (कमी) के दर्शन होते है। वे कई तरह के अभावों और संघर्ष में दुःखी जीवन जीते हुए दिखाई देते है और इसके परिणाम स्वरूप जन सामान्य के मन में साधनाओं के प्रति अविश्वास और भय का जन्म होता है और वह साधनाओं से दूर भागता है। भय और अविश्वास के अतिरिक्त योग्य गुरू का अभाव, विभिन्न यम-नियम-संयम, साधना की सिद्धि में लगने वाला लम्बा समय और कठिन परिश्रम भी जन सामान्य को साधना क्षेत्र से दूर करता है। किंतु श्रीविद्या-साधना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अत्यंत सरल, सहज और शीघ्र फलदायी है। सामान्य जन अपने जीवन में बिना भारी फेरबदल के सामान्य जीवन जीते हुवे भी सुगमता पूर्वक साधना कर लाभान्वित हो सकते है।श्रीविद्या साधना जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे नौकरी,
व्यवसाय, आर्थिक उन्नति, सामाजिक
उन्नति, पारिवारिक शांति, दाम्पत्य
सुख, कोर्ट कचहरी, संतान-सुख, ग्रह-
नक्षत्रदोष शांति में साधक को पूर्ण
सफलता प्रदान करती है। यह साधना
व्यक्ति के सर्वांगिण विकास में सहायक
है। कलियुग में श्रीविद्या की साधना ही
भौतिक, आर्थिक समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधना है।
श्रीविद्या-साधना के सिद्धांत संतुलन का सिद्धांत- शक्ति के सभी रूपों में धन-समृद्धि, सत्ता, बुद्धि, शक्ति, सफलता के क्षेत्र में।
संपूर्णता का सिद्धांत- धर्म-अर्थ-काम-
मोक्ष की प्राप्ति। सुलभता का सिद्धांत- मिलने में आसान। सरलता का सिद्धांत- करने में आसान। निर्मलता का सिद्धांत- बिना किसी दुष्परिणाम के साधना।
निरंतरता का सिद्धांत- सदा, शाश्वत लाभ और उन्नति। सार्वजनिकता का सिद्धांत-हर किसी के लिए सर्वश्रेष्ठ साधना ।
देवताओं और ऋषियों द्वारा उपासित
श्रीविद्या-साधना वर्तमान समय की
आवश्यकता है। यह परमकल्याणकारी
उपासना करना मानव के लिए अत्यंत
सौभाग्य की बात है। आज के युग में बढ़ती
प्रतिस्पर्धा, अशांति, सामाजिक असंतुलन और मानसिक तनाव ने व्यक्ति की प्रतिभा और क्षमताओं को कुण्ठित कर दिया है। क्या आपने कभी सोचा है कि हजारों प्रयत्नों के बाद भी आप वहां तक क्यों नहीं पहुच पाये जहां होना आपकी चाहत रही है ? आप के लिए अब कुछ भी असंभव नहीं है, चाहें वह सुख-समृद्धि हो, सफलता, शांति ऐश्वर्य या मुक्ति (मोक्ष) हो। ऐसा नहीं कि साधक के जीवन में विपरीत परिस्थितियां नहीं आती है। विपरीत परिस्थितियां तो प्रकृति का महत्वपूर्ण अंग है। संसार में प्रकाश है तो अंधकार भी है। सुख-दुःख, सही-गलत, शुभ-अशुभ, निगेटिव-पॉजिटिव, प्लस-मायनस आदि। प्रकाश का महत्व तभी समझ में आता
है जब अंधकार हो। सुख का अहसास तभी होता हैं जब दुःख का अहसास भी हो
चुका हो। श्रीविद्या-साधक के जीवन में
भी सुख-दुःख का चक्र तो चलता है, लेकिन
अंतर यह है कि श्रीविद्या-साधक की
आत्मा व मस्तिष्क इतने शक्तिशाली हो
जाते है कि वह ऐसे कर्म ही नहीं करता कि
उसे दुःख उठाना पड़े किंतु फिर भी यदि
पूर्व जन्म के संस्कारों, कर्मो के कारण जीवन में दुःख संघर्ष है तो वह उन सभी विपरीत-परिस्थितियों से आसानी से मुक्त हो जाता है। वह अपने दुःखों को नष्ट करने में स्वंय सक्षम होता है।

श्रीविद्या के मुख्य 12 संप्रदाय हैं:-
इनमें से बहुत से संप्रदाय लुप्त हो गए है, केवल मन्मथ और कुछ अंश में लोपामुद्रा का संप्रदाय अभी जीवित है। कामराज विद्या (कादी) और पंचदशवर्णात्मक तंत्र राज, और त्रिपुरउपनिषद के समान लोपामुद्रा विद्या आदि भी पंचदशवर्णात्मक हैं। कामेश्वर अंकस्थित कामेश्वरी की पूजा के अवसर पर इस विद्या का उपयोग होता है,लोपामुद्रा अगस्त की धर्मपत्नी थीं। वह
विदर्भराज की कन्या थीं। पिता के घर में
रहने के समय पराशक्ति के प्रति भक्ति संपन्न हुई थीं। त्रिपुरा की मुख्य शक्ति
भगमालिनी है। लोपामुद्रा के पिता
भगमालिनी के उपासक थे। लोपामुद्रा
बाल्यकाल से पिता की सेवा करती थी।
उन्होंने पिता की उपासना देखकर
भगमालिनी की उपासना प्रारंभ कर दी।
देवी ने प्रसन्न होकर जगन्माता की पदसेवा
का अधिकार उन्हें दिया थाद्य त्रिपुरा
विद्या का उद्धार करने पर उनके नाम से
लोपामुद्रा ने ऋषित्व प्राप्त कियाद्।
अगस्त्य वैदिक ऋषि थे। बाद में अपनी
भार्या से उन्होंने दीक्षा ली।
दुर्वासा का संप्रदाय भी प्राय: लुप्त ही है। श्रीविद्या, शक्ति चक्र सम्राज्ञी है और ब्रह्मविद्या स्वरूपा है। यही आत्मशक्ति है। ऐसी प्रसिद्धि है कि 
“यत्रास्ति भोगो न च तत्र मोझो;
यत्रास्ति भोगे न च तत्र भोग:।”
“श्रीसुंदरीसेवनतत्परानां,
भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव।”
अगस्त्य केवल तंत्र में ही सिद्ध नहीं थें, वे
प्रसिद्ध वैदिक मंत्रों के द्रष्टा थे। श्री
शंकरमठ में भी बराबर श्रीविद्या की
उपासना और पूजा होती चली आ रही है।
त्रिपुरा की स्थूलमूर्ति का नाम ललिता
है। ऐसी किवदंती है कि अगस्त्य
तीर्थयात्रा के लिये घूमते समय जीवों के
दु:ख देखकर अत्यंत द्रवित हुए थे। उन्होंने
कांचीपुर में तपस्या द्वारा महाविष्णु को
तुष्ट किया था। उस समय महाविष्णु ने
प्रसन्न होकर उनके सामने त्रिपुरा की
स्थूलमूर्ति ललिता का माहात्म्य वर्णित
किरण जिस प्रसंग में भंडासुर वध प्रभृति
का वर्णन था, इसका सविस्तर विवरण उनके स्वांश हयग्रीव मुनि से श्रवण करें। इसके अनंतर हयग्रीव मुनि ने अगस्त्य को भंडासुरका वृत्तांत बतलाया। इस भंडासुर ने तपस्या के प्रभाव से शिव से वर पाकर 105 ब्रह्मांडों का अधिपत्य लाभ किया था। श्रीविद्या का एक भेद कादी है, एक हे
हादी और एक कहादी।
श्रीविद्या गायत्री का अत्यंत गुप्त रूप है।
यह चार वेदों में भी अत्यंत गुप्त है। प्रचलित गायत्री के स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों प्रकार हैं। इसके तीन पाद स्पष्ट है, चतुर्थ पाद अस्पष्ट है। गायत्री वेद का सार है। वेद चतुर्दश विद्याओं का सार है। इन विद्याओं से शक्ति का ज्ञान प्राप्त होता है।
कादी विद्या अत्यंत गोपनीय है। इसका
रहस्य गुरू के मुख से ग्रहण योग्य है।
संमोहन तंत्र के अनुसार तारा, तारा का साधक, कादी तथा हादी दोनों मत से संश्लिष्ट है। हंस तारा, महा विद्या, योगेश्वरी कादियों की दृष्टि से काली, हादियों की दृष्टि से शिवसुदरी और कहादी उपासकों की दृष्टि से हंस है। श्री विद्यार्णव के अनुसार कादी मत मधुमती है। यह त्रिपुरा उपासना का प्रथम भेद है।
दूसरा मत मालिनी मत (काली मत) है।
कादी मत का तात्पर्य है जगत चैतन्य
रूपिणी मधुमती महादेवी के साथ
अभेदप्राप्ति। काली मत का स्वरूप है
विश्वविग्रह मालिनी महादेवी के साथ
तादात्म्य होना । दोनों मतों का विस्तृत विवरण श्रीविद्यार्णव में है।
गोड़ संप्रदाय के अनुसार श्रेष्ठ मत कादी है, परंतु कश्मीर और केरल में प्रचलित शाक्त मतों के अनुसार श्रेष्ठ मत त्रिपुरा और तारा के हैं। कादी देवता काली है। हादी उपासकों की त्रिपुरसंदरी हैं और कहादी की देवता तारा या नील सरस्वती हैं।
त्रिपुरा उपनिषद् और भावनोपनिषद्
कादी मत के प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। किसी
किसी के मतानुसार कौल उपनिषद् भी
इसी प्रकार का है, त्रिपुरा उपनिषद् के
व्याख्याकार भास्कर के अनुसार यह
उपविद्या सांख्यायन आरणयक के अंतर्गत है। हादी विद्या का प्रतिपादन त्रिपुरातापिनी उपनिषदद्य में है। प्रसिद्धि है कि दुर्वासामुनि त्रयोदशाक्षरवाली हादी विद्या के उपासक थे। दुर्वासा रचित ललितास्तव रत्न नामक ग्रंथ बंबई से प्रकाशित हुआ है।
मैंने एक ग्रंथ दुर्वासाकृत परशंमुस्तुति देखा
था, जिसका महाविभूति के बाद का
प्रकरण है अंतर्जा विशेष उपचार परामर्श।
दुर्वासा का एक और स्तोत्र है त्रिपुरा
महिम्न स्तोत्र। उसके ऊपर नित्यानंदनाथ की टीका है। सौभाग्यहृदय स्तोत्र नाम से
एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसके रचयिता
महार्थमंजरीकार गोरक्ष के परमगुरू हैं।
योगिनी हृदय या उत्त्र चतु:शती सर्वत्र
प्रसिद्ध है। 
पूर्व चतु:शती रामेश्वर कृत परशुराम कल्पसूत्र की वृति में है। ब्रह्मांडपुराण के उत्तरखंड में श्री विद्या के विषय में एक प्रकरण हैद्य यह अनंत, दुर्लभ, उत्तर खंड में
त्रिशति अथवा ललितात्रिशति नाम से
प्रसिद्ध स्तव है जिसपर शंकराचाय्र की
एक टीका भी है। इसका प्रकाशन हा चुका
है। नवशक्ति हृदयशास्त्र के विषय में
योगिनी की दीपिका टीका में उल्लेख
है। इस प्रस्थान में सूत्रग्रंथ दो प्रसिद्ध हैं: एक अगस्त्य कृत, शक्ति सूत्र और दूसरा
प्रत्यभिज्ञाहृदय नामक शक्तिसूत्र।
परशुराम कृतकल्पसूत्र भी सूत्रसाहित्य के
अंतर्गत है। यह त्रिपुरा उपनिषद का उपबृंहण है। ऐसी प्रसिद्धि है कि इसपर रामेश्वर की एक वृत्ति है जिसका नाम
सौभाग्योदय है एवं जिसकी रचना 1753
शकाब्द में हुई थी। इसका भी प्रकाशन हो
चुका है। इस कल्पसूत्र के ऊपर भास्कर राय ने रत्नालोक नाम की टीका बनाई थी।
अभी यह प्रकाशित नहीं हुई है। गौड़पाद के नाम से श्रीविष्णुरत्न सूत्र प्रसिद्ध है।
इसपर प्रसिद्ध शंकरारणय का व्याख्यान
है। यह टीका सहित प्रकाशित हुआ है।
सौभग्य भास्कर में त्रैपुर सूक्त नाम से एक
सूक्त का पता चलता है। इसके अतिरिक्त
एक और भी सूत्रग्रंथ बिंदु सूत्र है। भास्कर ने भावनोपनिषद भाष्य में इसका उल्लेख
किया है। किसी प्राचीन गंथागार में
कौल सूत्र, का एक हस्तलिखित ग्रंथ
दिखाई पड़ा था जो अभी तक मुद्रित
नहीं हुआ है। स्तोत्र ग्रंथें में दुर्वासा का ललितास्तव ग्रंथ प्रसिद्ध है। इसका उल्लेख ऊपर किया गया है। गौड़पाद कृत सौभाग्योदय स्तुति आदि प्रसिद्ध ग्रंथ हैं जिनपर शंकराचार्य की टीकाएँ मिलती हैं। 
ऐसा कहा जाता है कि सौभाग्योदय के ऊपर लक्ष्मीधर ने भी एक टीका लिखी थी। सौभाग्योदय स्तुति की रचना के अनंतर शंकरार्चा ने सौंदर्य लहरी का निर्माण किया जो आनंदलहरी नाम से भी प्रसिद्ध है। इनके अतिरिक्त ललिता सहस्र नाम एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसपर भास्कर की टीका सौभाग्य भास्कर (रचनाकाल 1729 ई0) है।
ललिता सहस्रनाम के ऊपर काशीवासी पं काशीनाथ भट्ट की भी एक टीका थी।
काशीनाथ भट्ट दीक्षा लेने पर शिवानंद
के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी टीका का
नाम नामार्थ संदीपनी है। श्री विद्यार्णव के अनुसार कादी या मधुमती मत के मुख्य चार ग्रंथ हैं- तंत्रराज, मातृकार्षव, योगिनीहृदय नित्याषोडशार्णव और वामकेश्वर वस्तुत: पृथक ग्रंथ नहीं हैं, एक ग्रंथ के ही अंशगत भेद हैं। इसी प्रकार बहुरूपाष्टक एक पुस्तक नहीं है।
यह आठ पुस्तकों की एक पुस्तक है।
तंत्रराज के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध दो भाग
हैं। 64 तंत्रों के विषय जहाँ सौंदर्यलहरी में
आए हैं उस स्थल में इस विषय में चर्चा की गई है जिससे पता चलता है कि (विशेषत:
लक्ष्मीघर की टीका में) मतांतर तंत्र
राजटीका मनोरमा का मत प्रतीत होता
है। भास्कर राय ने सेतुबंध में भी आलोचना प्रस्तुत की है। तंत्र राज में जो नित्याहृदय की बात कही गयी है वह वस्तुत: योगिनीहृदय का ही नामांतर है। यह वामकेश्वर तंत्र का उत्तरार्ध है।
नित्याहृदय इत्येतत् तंत्रोत्तरार्धस्य योगिनी हृदयस्य संज्ञा। ऐसा प्रतीत होता है कि दो मतों के कारण दो विभाग हैं। वर्णसम और मंत्रसम के नाम पर ये नाम है। क, ह, ये महामंत्र उत्त्रान्वय के हैं। ककार से ब्रह्मरूपता है। यह कादी मत है। हकार से शिवरूपता, हादी मत है। कादी मत, काली मत और हादी मत सुंदरी मत हैं। दोनों मिलकर कहादी मत होता है। सुंदरी में प्रपंच है। जो सुंदरी से भिन्न है उसमें प्रपंच नहीं है। सौंदर्य सवदर्शन है। ब्रह्मसंदर्शन का अर्थ है असौंदर्य का दर्शन। 58 पटल में है कि भगवती सुंदरी कहती हैं-
“अहं प्रपंचभूताऽस्मि, सा तु निर्णुणारूपिणी”
(शक्ति संगमतंत्र, अध्याय 58)
कोई कोई कहते हैं कि कादी, हादी और कहादी आदि भेदों से तंत्रराज के कई भेद हैं। योगिनीहृदय सुप्रसिद्ध ग्रंथ है। यह
वामकेश्वर तंत्र का उत्तर चतु:शती है।
भास्कर राय ने भावनोपनिषद के भाष्य में
कहा है कि यह कादी मतानुयायी ग्रंथ है।
तंत्रराज की टीका मनोरमा में भी यही
बात मिलती है परंतु बरिबास्य रहस्य में है
कि इसकी हादी मतानुकृल व्याख्या भी
वर्तमान है। योगिनी हृदय ही नित्याहृदय
के नाम से प्रसिद्ध है।

Author: blackmagichealer

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But we do not get in return to the proportions of our labor . Black magic. What’s the point? You can easily do as much damage to someone (and yourself) with conventional means. havan sadhna puja We get very little even after the best of our efforts, we toil to get success in our business but the profits are too little. We do not want any discontentment or discord in our family life, but inspite of our best efforts, the peace and tranquility of our family is disturbed. On the other hand people work very little, but get too much in return. Businessmen have ample wealth just be putting in little efforts, bit we are disappointed even after continuous efforts. It leads us to conclude, that there are some evil forces which make our strategies unsuccessful. Common Black Magic Spells:- Black magic can most often be found in the uses of love magic. Unfortunately, most people who cast love spells are trying to force another person to love them or another. Despite the fact that people often associate good feelings with love, in forcing another person to fall in love, there is certainly a violation in that person’s free will. black magic 2 Tantra Kala Jadoo (Black Magic): Major Causes Whenever you face such situations, feel assured that someone has used Black Magic on you, as a result of which all your efforts become ineffective. Though such prayog is not easy, but some Tantriks expertise in it and torture innocent souls at the behest of selfish and greedy people. Such Tantriks have made Black Magic their profession, and use it on others indiscriminately at the behest of their adversaries, to mint money. Thus the happy life of the people is spoiled. Such so-called Black-Magicians, no doubt can harm others, but they do not possess the powers to counter such Tantrik moves. As a result the victim keeps on suffering and sometimes it leads to the death of the victim. It is in fact very easy to cause harm through Tantra, but very difficult to amend the damage done. In order to learn the art of saving, one has to undergo Sadhna and Siddhi, and only a Tantrik of high caliber can do so. Symptoms Of Black Magic 1. Continuous illness. All treatments fail. 2. Constant worries, suicidal tendencies, or a desire to move away from home and family. 3. Continuous illness of any member of the family. 4. Too much weakness associated with obesity and being short tempered. 5. Sterility, without any physical deficiency or without any medical reason. 6. Repeated miscarriages or death of the children. 7. Sudden unnatural deaths in the family. 8. Problems in the construction of house, factory or any other building. 9. Shortness of money, in spite of hard labor. 10. No desire to live. Feels suffocated. Life seems useless. No desire to rise in life. 11. Sudden quarrels between brothers or the members of the family, without any reason. 12. Achievement of objectives seems impossible. 13. Loss in the business of property. 14. Ill-health and under-development of children. 15. Loss of peace due to the fear of enemies and their evil designs. 16. Discord between spouses or the family. 17. Greatest efforts resulting in a failure. 18. Lack of Govt. favors, promotions and the desired transfers. 19. Poverty, in spite of hard work. These are some effects which prove that you are under the spell of Black Magic. Though intelligent, you fail to find solution to such problems. It is due to the Tantrik Prayog or Black magic that all your wisdom, all your strategies and all your intelligence fails. Talisman Raksha Kavach for protection of Black magic In order to overcome all these troubles, Talisman Raksha Kavach is indispensable, to make such Black Magic ineffective. 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