Bagalamukhi Kavach FOR PROTECTION

It is said that Offering of Puja and homa to Devi Bagala Mukhi acts like a weapon to stop your enemy from doing a harm against you. It is also believed that by offering Puja and Homa to Ma Bagalamukhi somebody can get a relief from legal problems; he/she can get rid of being the victim of an adverse incidents; can avoid the possibility of accidents, blood shed etc.  Holy KAVACH of DEVI BAGALAMUKHI gives you a protection from those above negative events in your life. It gives you a guard against your Enemies (Enemy’s activities targeting you …to make harm of you) and  gives you a victory on them. It gives you a success combating your adverse situation & Misfortunes. Baglamukhi Kavach is also very effective for removing the effect of Blackmagic done by your enemy against you for making harm. 

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Maha Kali Raksha Kavach FOR PROTECTION

Very Auspicious Kavach which may gives you a Success in your mission or project. It removes the clouds of uncertainty and gives you success. This Kavach saves you from your acute crisis, Danger and many negative incidents. It saves you from life threatening condition too. Mahakali Kavach is also ideal for giving you protection against the effect of Black Magic, getting rid of evils eye (Buri Najar) too. People also go for Maha Kaali Kavach for removing the fear, the effect of bad persons’ evil forces or Black magic. Also for bringing peace and happiness in their family or individually. It is believed that wearing of Maha kali Kavach by Husband and wife of a family leads to a harmony, peace and prosperity in that family. Maha kali Kavacham is equally effective to cure the broken relationship between a Husband and wife or between Love mates. It may attract the opposite sex i.e the man or the woman to you whom you have fallen in love with.

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Shiva mantra yantra tantra sadhna in hindi

शव साधना.

तंत्र के नाथ शाखा मे कापालिक सम्प्रदाय के तांत्रिक शव-साधना मे पारंगत होते है,येसे ही एक तांत्रिक महाकाल भैरवानन्द सरस्वती जी है,उनकी उम्र ९० साल की है परंतु वो आज भी 30-40 वर्ष उम्र के दिखाई पडते है ,और उनका लंबाई 6 फुट,हमेशा काले रंग के वस्त्र धारण करते है,गले मे माँ कामाख्या देवी जी का छोटासा पारद विग्रह रखते है,१९६५ मे अघोर संन्यास लेकर उन्होने तंत्र साधनाये आरंभ की थी,वे ‘सरस्वती नामा’ और हमारे प्यारे सदगुरुजी से दीक्षीत है,उन्होने शव साधना कई बार की है और पूर्ण सफलता भी प्राप्त की है,एक बार मुझे उनके प्यारे शिष्य श्री रूद्रेश्वर भैरवानन्द सरस्वती जी के साथ शव-साधना के बारे मे चर्चा करनेका सौभाग्य मिला और उसी चर्चा मे उन्होने शव साधना का विधि भी बताया,अब गुरुजी के कृपा से सुशिल जी को 7 वर्ष पूर्व उनके आश्रम मे यह अद्वितीय साधना करने का अनुमति मिला था।
प्रक्टिकल साधना विधि जो श्री रूद्रेश्वर भैरवानन्द सरस्वती जी के मुख से सुशिल जी (श्री गोविंदनाथ) ने की है और उसको प्राप्त करके पाठको के लिये यहा दीया जा रहा है। यह साधना प्राप्त करके आज 7 वर्ष पुर्ण हुए है।
यह साधना रात्री काल कृष्ण पक्ष की अमावस्या मे,या कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष की चतुर्दशी और दिन मंगलवार हो तो शव साधना काफी महत्वपूर्ण हो जाती है,शव साधना के पूर्व ही ये जान लेना आवश्यक है के शव किस कोटी का है,क्योकों शव साधना के लिये किसी चांडाल या अकारण गए युवा व्यक्ति (२०-३५) अथवा दुर्घटना से मरे व्यक्ति का शव ज्यादा उपयुक्त मानते है,वृद्ध रोगी येसे लोगो के शव कोई काम मे नहीं आते है।
सर्वप्रथम पूर्व दिशा की ओर अभिमुख होकर ‘फट मंत्र’ पढ़ना है, इसके बाद चारो दिशाए कीलने के लिये पूर्व दिशा मे अपने गुरु, पश्चिम मे बटुक भैरव , उत्तर मे योगिनी और दक्षिण मे विघ्नविनाशक गणेश को विराजमान करने के लिये आराधना करनी है । शमशान की भूमि पर यह मंत्र अंकित करना है-
।। “हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंस्ट्रे प्रचंडे चंडनायिकेदानवान द्वाराय हन हन शव शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूं फट “।।

इसके बाद तीन बार वीरार्दन मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि अर्पित करे (यहा पर वीरार्दान मंत्र नही दे रहा हू,उसे गोपनीय रख है )। इसके उपरांत बड़े विधि-विधान से पूर्वा दिशा मे श्मशानाधिपति, दक्षिण मे भैरव,पश्चिम मे काल भैरव तथा उत्तर दिशा मे महाकाल भैरव की पुजा सम्पन्न कर और काले मुर्गे का बलि प्रदान करे। इसके तुरंत बाद ‘ॐ सहस्त्रवरे हूं फट’ मंत्र से शिखाबंधन करना पड़ेगा । साधक यदि अपनी सुरक्षा करना नहीं जानता तो ‘शव-साधना’ पूरी नहीं हो सकती। इसीलिए आत्मरक्षा के लिये अमोघ मंत्र पढ़ना है-
“हूं ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर घोर घोतर तनुरुप चट चट पचट कह शकह वन वन बंध बंध घतपय घातय हूं फट अघोर मं”

फिर शव के सर के पास खड़े होकर सफ़ेद तिल का तर्पण करना है । परिक्रमा भी करनी है और ‘ॐ फट’ मंत्र से शव को अभिमंत्रित किया। फिर यह मंत्र पढ़ना है‘ॐ हूं मृतकाय नमः फट’और उसे स्पर्श करे , पुष्पांजलि देकर मंत्र पढे-
“ॐ वीरेश प्रमानंद शिवनंद कुलेश्वर, आनंद भैरवाकर देवी पर्यकशंकर। वीरोहं त्वं पप्रधामि उच्चष्ठ चंडिकारतने”
और शव को प्रणाम किरे । ‘ॐ हूं मृतकाय नमः’ मंत्र से प्रक्षालन कर उसे सुगंधित जल से स्नान कराये , शव को वस्त्र से पोंछे,फिर उस पर रक्तचन्दन का लेप किरे’।
मै यहा बता दूँ की सभी क्रियाए शव की सहमति से ही संभव है। रक्तचन्दन के बाद कोई साधक डर भी सकता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। इस अवस्था मे शव रक्तवर्णी हो जाता है। यदि ऐसा हो रहा हो तो साधक को तत्काल अपनी सुरक्षा मुकम्मल कर लेनी चाहिए अन्यथा शव उसका भक्षण कर सकता है।
अतएव अपने झोले मे से सेव निकाल कर ‘रक्त क्रो यदि देवेशी भक्षयेत कुलसाधकम’ मंत्र पढ़ते हुए शव के मुख मे डाले । फिर ताम्बूल खिलाये । कलोक्त पीठ मंत्र व ‘ॐ ह्रीं फट’ का उच्चारण किरे , इसके बाद शव को कंबल से अच्छी तरह ढँक दे और शव को कमर से उठाये । इतने मे ही आसमान मे बिजली कड़क उठटी है या फिर उठ सकती है । अब यह मंत्र पढे –
‘गत्वा शतश्रु साविघ्यं धारयेत कटिदेशत। यद युपद्रावयेत दा, दयात्रीष्ट्ठीवनं शवे’

यह मंत्र से ही शव शांत हो जाता है । इसके बाद दशों
दिशाओ और दिक्पालों की पुजा करे । फिर अनार का बलि दे । इसके बाद मंत्र पढे ‘ह्रीं फट शवासनाय नमः’। कहकर शव की अर्चना करे । शव को कब्जे मे लेने के लिये उसकी घोड़े की तरह सवारी भी करनी पड़ती है। इसलिए उसकी सवारी भी की जानि चाहिये । सवारी के बाद शव के केशो की चुटिया बांन्धे । फिर अपने गुरु एवं गणपति का ध्यान करे , फिर शव को प्रणाम करे । फिर शव के सम्मुख खड़े होकर यह मंत्र पढे-
अद्ययैत्यादी अमुक गोत्र श्री अमुक शर्मा देवताया: संदर्शनमक्राम: अमुक मन्त्रास्यामुक्त संख्यक जपमहं करिष्ये “ और संकल्प साधे ।
इसके बाद ‘ह्रीं आधार शक्ति कमलासनाय नमः’। मंत्र से आसन की पुजा करे । महाशंख की माला (मनुष्य शरीर की अस्थियों से बनी माला) से जप करना है । फिर मुख मे सुगंधित द्रव्य डालकर देवी का तर्पण करे । तत्पश्चात शव के सामने खड़े होकर-
“ॐ वशे मेभव देवेश वीर सिद्धिम देही देही महाभग कृताश्रय”

परायण मंत्र का पाठ किरे । सूत के द्वारा शव को बांन्धे और मंत्र बोले-
“हुं हुं बंधय बंधय सिद्धिम कुरु कुरु फट”

फिर मूलमंत्र से शव को जकड़ ले-
ॐ मद्रशोभव देवेश तीर सिद्धि कृतास्पद। ॐ भीमभव भचाव भावमोरान भावुक। जहाही मां देव देवेश। शव्नामाधिपदीपः

तीन बार परिक्रमा कर सिर मे गुरुदेव, हृदय मे इष्ट देवी का चिंतन करते हुए महाशंख की माला पर मंत्र का जप करे । सिद्धि के बाद शव की चुटिया खोल दे । शव के पैर खोल दे एवं शरीर को बंधन मुक्त कर दे । शव को नदी मे प्रवाहित कर पुजा सामग्री को भी नदी मे प्रवाहित कर दे । याद रखे कापालिक हमेशा शव साधना मनुष्य की भलाई के लिये ही करता है।
कापालिक’ वही, जो इस दुनिया के दु:खो को अपने कपाल (सिर) पर लिये घूमता है।

यह विधि यहा पे दे रहा हु परंतु इसमे कुछ गोपनीय मंत्र एवं मुद्राये मैंने गुप्त रखी है ,फिर भी अगर कोई यह साधना करना चाहे तो मुजसे संपर्क करके प्राप्त कर सकता है,इस साधना से कई लाभ उटाये जा सकते है।
आजकल फेसबुक,सोशल नेटवर्किंग,व्हाटस् अप,ब्लोगर…..पर बहोत सारे कापालिक तंत्र दीक्षा देने वाले गुरु बन गये है। उनको शव साधना पुछो तो वह पुछनेवाले के मन मे डर पैदा कर देते है तो येसे मुर्खो से बचे। कोइ तारापिठ के नाम पर तो कोइ स्वयंभू कापालिक सम्प्रदाय का गुरु आपको मिल जायेगा जो सिर्फ छोटे-छोटे मंत्र देकर साधकों को मार्ग से भटकायेगा और अंततः वह साधक साधना करना ही छोड़ देगा। यही आजकल के मुर्ख गुरुओ का प्लान है,इससे ज्यादा कुछ लिखने से कोइ सुधारने वाला नही है। शव साधना से पुर्व “शव सिद्धि दीक्षा” प्राप्त करने से साधक बिना शव के भी साधना सम्पन्न कर सकता है क्युके दीक्षा के बाद साधना गिली मिट्टी का शव बनाकर भी कर सकते है। गिली मिट्टी से बने हुए शव के माध्यम से शव सिद्धि करनी हो तो इतना विधि-विधान करने का कोइ आवश्यकता नही है परंतु यह आसान विधान तो तब करना सम्भव है जब “शव सिद्धि दीक्षा” को प्राप्त किया जाये अन्यथा शव साधना शमशान मे शव पर बैठकर ही किया जा सकता हैं।

Mahashivratri kalsurpa Dosa Nevaran In Hindi mantra tantra yantra

महाशिवरात्रि:कालसर्प दोष निवारण.

कालसर्प, अर्थात् सर्प और काल, इसमें भी सर्प योनी के बारे में हमारे शास्त्रों में बहुत वर्णन आया है। गीता में स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है कि पृथ्वी पर मनुष्य की उत्पत्ति (जन्म) केवल विषय-वासना के कारण ही हुई है। जीव रूपी मनुष्य जैसा कर्म करता है उसी के अनुरूप उसे फल मिलता हैं। विषय -वासना के कारण ही काम-क्रोध, मद-लोभ और अहंकार का जन्म होता है इन विकारों को भोगने के कारण ही जीव को सर्प योनी प्राप्त होती है। कर्मों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को कालसर्प दोष कहा जाता है।
कालसर्प योग
कुंडली में जब सारे ग्रह राहू और केतु के बीच में आ जाते हैं तब कालसर्प योग बनता हैं। ज्योतिष में इस योग को अशुभ माना गया है लेकिन कभी-कभी यह योग शुभ फल भी देता है। ज्योतिष में राहु को काल तथा केतु को सर्प माना गया है राहु को सर्प का मुख तथा केतु को सर्प का पूंछ कहा गया है। वैदिक ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह की संज्ञा दी गई है, राहु का जन्म भरणी नक्षत्र में तथा केतु का जन्म अश्लेषा नक्षत्र में हुआ है। जिसके देवता काल एवं सूर्य है । राहु को शनि का रूप और केतु को मंगल ग्रह का रूप कहा गया है, राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है, राहु के नक्षत्र आर्द्रा, स्वाति और शतभिषा है, राहु प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम, द्वादस भावों में किसी भी राशि का विशेषकर नीच का बैठा हो, तो निश्चित ही आर्थिक, मानसिक, भौतिक पीड़ायें अपनी महादशा अन्तरदशा में देता हैं। मनुष्य को अपने पूर्व दुष्कर्मों के फलस्वरूप कालसर्प दोष लगता है। उसके जन्म जन्मान्तर के पापकर्म के अनुसार ही यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चला आता है
कालसर्प दोष
कालसर्प योग मुख्य रूप से 12 प्रकार के होते है जो मनुष्य जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। इन सभी योगों का शुभ और अशुभ प्रभाव मनुष्य के जीवन को प्रभावित करता है। ये निम्न प्रकार के है –
अनंत कालसर्प योग –
जब लग्न में राहु और सप्तम भाव में केतु हो और उनके बीच समस्त अन्य ग्रह हों तो अनंत कालसर्प योग बनता है । इस अनंत कालसर्प योग के कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती । वह सदैव अशान्त क्षुब्ध परेशान तथा अस्थिर रहता है, बुद्धिहीन हो जाता है। मस्तिष्क संबंधी रोग भी परेशानी पैदा करते हैं।
कुलिक कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के द्वितीय भाव में राहु और अष्टम भाव में केतु हो तथा समस्त ग्रह उनके बीच हों, तो यह योग कुलिक कालसर्प योग कहलाता है।
वासुकि कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग वासुकीकालसर्प योग कहलाता है।
शंखपाल कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के चौथे भाव में राहु और दसवे भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग शंखपाल कालसर्प योग कहलाता है।
पद्म कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु और ग्याहरवें भाव में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच हों तो यह योग पद्म कालसर्प योग कहलाता है।
महापद्म कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच कैद हों तो यह योग महापद्म कालसर्प योग कहलाता है।
तक्षक कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तथा बाकी के सारे इनकी कैद मे हों तो इनसे बनने वाले योग को तक्षक कालसर्प योग कहते है।
कर्कोटक कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के अष्टम भाव में राहु और दूसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को कर्कोटक कालसर्प योग कहते हैं।
शंखनाद कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते हैं।
पातक कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के दसवें भाव में राहु और चौथे भाव में केतु हो और सभी सातों ग्रह इनके मध्य में अटके हों तो यह पातक कालसर्प योग कहलाता है।
विषाक्तर कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के ग्याहरवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य में अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते हैं।
शेषनाग कालसर्प योग –
जब जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु और छठे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते हैं।
आप निम्न प्रकार से स्वयं अपनी कुण्डली जांचकर कालसर्प योग की जांच कर सकते हैं। इसी प्रकार यदि सूर्य के साथ राहू की युति बनती है तो पितृदोष बनता है। इन दोषों का प्रभाव जीवन में स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे व्यक्ति प्रयत्न करने पर भी जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
आंशिक कालसर्प योग –
जन्म कुण्डली में राहु और केतु के मध्य अन्य सातों ग्रह स्थित होने से पूर्ण कालसर्प दोष होता है। कुछ व्यक्तियों के जन्म चक्र में राहु और केतु के मध्य शेष सातों ग्रह न होकर एक या दो ग्रह बाहर होते है। इस स्थिति में यह आंशिक कालसर्प दोष कहलाता है। इसका प्रभाव भी उतना ही खतरनाक होता है जितना पूर्ण कालसर्प दोष का होता है। यह ध्यान रहे कि यदि शनि, शुक्र और बुध तीनों में से एक भी ग्रह राहु और केतु चक्र से अलग है तो बड़ा ही विचित्र शमनक दोष हो जाता हैं यह दोष भी पितृदोष, कालदोष कहा गया है।

राहु और कालसर्प योग
राहु के गुण -अवगुण शनि जैसे हैं, राहु जिस स्थान में जिस ग्रह के योग में होता है उसका व शनि का फल देता है। शनि आध्यात्मिक चिंतन, विचार, गणित के साथ आगे बढ़ने का गुण अपने पास रखता है, यही गुण राहु के हैं।
राहु का योग जिस ग्रह के साथ है वह किस स्थान का स्वामी है यह भी अवश्य देखना चाहिए। राहु मिथुन राशि में उच्च, धनु राशि में नीच और कन्या राशि में स्वगृही होता है। राहु के मित्र ग्रह – शनि, बुध और शुक्र हैं। राहु के शत्रु ग्रह – सूर्य, मंगल और केतु हैं। चन्द्र, बुध, गुरु उसके समग्रह हैं। कालसर्प योग जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में है, उसे जीवन में बहुत कष्ट झेलना पड़ता है। इच्छित फल प्राप्ति और कार्यों में बाधाएं आती हैं, बहुत ही मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट उठाने पड़ते हैं।
कालसर्प योग से पीड़ित जातक का भाग्य प्रवाह राहु, केतु अवरुद्ध करते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप जातक की प्रगति नहीं होती। उसे जीविका चलाने का साधन नहीं मिलता, अगर मिलता है तो उसमें अनेक समस्याएं पैदा होती हैं। जिससे उसको जीविका चलानी मुश्किल हो जाती है। विवाह नहीं हो पाता। विवाह हो भी जाए तो संतान-सुख में बाधाएं आती हैं।
कालसर्प योग के प्रभाव
कालसर्प योग व्यक्ति के जीवन में भाग्य के प्रवाह को बाधित कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप उसके इस जन्म में और पूर्व जन्म में किये गये पाप कर्मों का प्रभाव बढ़ जाता है। एक प्रकार से कालसर्प योग व्यक्ति के जीवन में दुर्भाग्य को बढ़ाता है। मुख्यत ये दुर्भाग्य चार प्रकार के होते हैं –
1. व्यक्ति को उसके परिश्रम का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता, उसके जीवन में निरन्तर धन का अभाव बना रहता है।
2. शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बल बना रहता है। उत्साह की कमी के कारण जीवन बोझ सा व्यतीत होता है।
3. संतान पक्ष से भी कष्ट भोगने पड़ते हैं।
4. गृहस्थ जीवन बहुत अस्त-व्यस्त हो जाता है, पति एवं पत्नि में निरन्तर कलह होता रहता है।
अतः प्रत्येक व्यक्ति को कालसर्प दोष निवारण साधना, मंत्र जप, अभिषेक, तर्पण-दान, पितृदोष मुक्ति, क्रिया एवं शमन क्रिया अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए।
शास्त्रों में यह भी लिखा है कि यदि आपको अपनी कुण्डली तथा परिवार के सदस्यों की कुण्डली की जानकारी नहीं है तो भी एक बार तो कालसर्प दोष निवारण पूजन अभिषेक परिवार के सभी सदस्यों के लिए अवश्य ही करना चाहिए।

(विशेष:अपना पुर्ण नाम और नया फोटो मेरे ई-मेल blackmagicindia@hotmail.com पर भेजीये,आपको निशुल्क मे कालसर्प दोष निवारण दीक्षा दिया जायेगा । दीक्षा प्राप्त करने के दुसरे दिन दक्षिणा के रुप मे किसी भी गरीब व्यक्ति को कुछ रुपये अपने योग्यता अनुसार दान मे दे दिजीये । अवश्य ही आपको कालसर्प दोष निवारण हेतु शिव जी के आशिर्वाद से मुक्ति मिल सकता है। फोटो आज से लेकर 22/02/2017 तक ही भेजने हैं क्युके 24/02/2017 को महाशिवरात्रि के रात्री मे आपको दीक्षा प्रदान कर दिया जायेगा।)

Are you getting continuous obstacles in your life? Are your children always ill?
Is your family life not peaceful? Do you encounter failure while climbing on steps for success? Is your body always full of diseases and your mind always full of tension?
Kalsarpa, i.e a malefic combination of snake and time; has been described in detail in our holy scriptures. In the Gita, Lord Krishna himself has stated that the origin (birth) of man on earth occurred only because of human sexuality. A person gets the fruits as per the actions which he performs in his life. Yearning-anger, pride-greed and ego are born out of lust-desire, and the creature gets Snake Yoni to experience these vices. Kaalsarp Dosh is the malefic impact on future generations due to flawed actions.

Kalsarpa Yoga
The Kalsarpa Yog is created when all the planets in the horoscope come between Rahu and Ketu. This planetary combination is considered inauspicious in astrology but sometimes it also proves auspicious. In astrology, Rahu is considered as Kaal (Time or Death) and Ketu is considered as a serpant, Rahu is called the mouth and Ketu is called the tail of the serpant. Vedic astrology describes Rahu and Ketu as shadowy planets, Rahu originated in Bharani Nakshatra and Ketu in Ashlesha Nakshatra. The presiding Gods are Kaal and Sun. Rahu has been termed as a form of Saturn planet and Ketu as a form of Mars planet, Rahu is benevolent in Gemini and malevolent in Sagittarius. The constellations of Rahu are Aadra, Swati and Shatbhisha. If Rahu is placed in 1, 2, 4, 5, 7, 8, 9 houses, especially as malefic in any Rashi, then it surely provides economic, mental and physical problems in its Mahadasha Antardasha. A person gets afflicted with Kaalsarp Dosha due to the misdeeds of his past lives. This affliction continues across generations due to his sins in various lives.

Kalsarpa Dosha
There are primarily 12 types of Kalsarpa Yoga which cause a great impact to the person. The Good and bad effects of these formulations affects human life. These types are –
Anant Kalsarpa Yoga-
When Rahu is Lagna and Ketu is in 8 house and all the other planets are between them, then Anant Kalsarpa Yoga gets created. The person doesn’t get any mental peace throughout his life due to Anant Kalsarpa Yoga. He is always upset, distressed, dismayed and disturbed and becomes fatuous. The Neurological diseases also disturb him.
Kulik Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 2 house and Ketu in 8 house and all the other planets are between them, then Kulik Kalsarpa Yoga gets created.
Vasuki Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 3 house and Ketu in 9 house and all the other planets are between them, then Vasuki Kalsarpa Yoga gets created.
Sankhpal Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 4 house and Ketu in 10 house and all the other planets are between them, then Sankhpal Kalsarpa Yoga gets created.
Padma Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 5 house and Ketu in 11 house and all the other planets are between them, then Padma Kalsarpa Yoga gets created.
Mahapadma Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 6 house and Ketu in 12 house and all the other planets are enclosed between them, then Mahapadma Kalsarpa Yoga gets created.
Takshak Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 8 house and Ketu is in the Lagna and all the other planets are imprisoned between them, then Takshak Kalsarpa Yoga gets created.
Karkotaka Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 8 house and Ketu in 2 house and all the other planets are struck between them, then Karkotaka Kalsarpa Yoga gets created.
Shankhnaad Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 9 house and Ketu in 3 house and all the other planets are struck between them, then Shankhnaad Kalsarpa Yoga gets created.
Paatak Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 10 house and Ketu in 4 house and all the other planets are between them, then Paatak Kalsarpa Yoga gets created.
Vishaktr Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 11 house and Ketu in 5 house and all the other planets are struck between them, then Vishaktr Kalsarpa Yoga gets created.
Sheshnaag Kalsarpa Yoga –
When Rahu is in 12 house and Ketu in 6 house and all the other planets are between them, then Sheshnaag Kalsarpa Yoga gets created.
Thus you can yourself check your horoscope to ascertain about Kaalsarpa Yoga. Similarly if Sun gets paired with Rahu then Pitridosh gets created. The effect of these defects is fully visible in the life. Such persons cannot achieve success inspite of various endeavors.
Partial Kalsarpa Yoga –
The location of other seven planets between Rahu and Ketu cause complete Kalsarpa Dosh. In some individuals, instead of all seven, 1 or 2 planets are outside the Rahu-Ketu combination. In this case it is called partial Kalsarpa Dosha. Its impact is as dangerous as that of full Kalsarpa Dosha. Note that if even one of the Saturn, Venus and Mercury, are outside the Rahu-Ketu combination, then this causes a very bizarre destructive defect. This Dosha is also called as Pitridosh Kaaldosh.

Rahu and Kalsarpa Yoga
The properties of Rahu are similar to those of Shani (Saturn); the location and planetary combination of Rahu provides appropriate results like Saturn. Saturn controls spiritual contemplation, consideration, quantitative capabilities, Rahu has similar properties.
One should also consider the fact that Rahu is combined with which planet, and which house is it Lord of. Rahu is benefic in Gemini, malefic in Sagittarius and normal in Virgo. The friendly planets of Rahu are Saturn, Mercury and Venus. The enemy planets of Rahu are Sun, Mars and Ketu. Moon, Mercury and Jupiter are its neutral planets. The person afflicted with Kalsarpa yoga in his horoscope has to undergo tremendous suffering in his life. He gets obstacles in achieving his desired results and actions. He has to undergo very grave mental, physical and economic hardship.
Rahu and Ketu block the fate of a Kalsarpa yoga afflicted native. This results in stoppage of growth and progress of native. He does not obtain any job, even if he gets a job, then multiple problems develop in meeting his livelihood. This makes it very difficult to live his life. Marriage does not take place. If marriage does take place then problems arise in children.
Effects of Kalsarpa Yoga
Kalsarpa yoga blocks the flow of destiny in person’s life, which consequently increases the effects of his sins in this and prior lives. Kalsarpa Yoga thus increases misfortune in person’s life. These misfortunes are of four types –
1. The person does not enjoy the full fruits of his labor in full, there is constant lack of money in his life.
2. The person remains physically and mentally weak. The lack of enthusiasm make life a burden.
3. The person has to bear suffering from the children’s side.
4. The domestic life of the person becomes a mess, there is constant squabble and bickering between the husband and wife.
So each person should definitely accomplish Kalsarpa Dosh Nivarann Sadhana, Mantra-Chanting, Abhishek, Tarpan-Daan, Pitridosh Mukti Kriya and Shaman Kriya.
The holy scriptures even mention that if you are not aware of your and your family members’ horoscope; even then you should definitely accomplish Kalsarp Dosh Nivarann Poojan Abhishek at least once for all family members

veer vetaal prayashikaran sadhna mantra in hindi

विर-वेताल प्रत्यक्षिकरण साधना

शाबर मंत्रो की विशेष रचना है,जो सिद्ध नवनाथों द्वारा है । ये मंत्र पढ़ने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती है एवं एक सामान्य साधक भी इन मंत्रों से लाभ उठा सकता है । आज पापमोचनी एकादशी के शुभ मुहूर्त पर मैं यह मंत्र और इससे संबंधित जानकारी आपको देना चाहता हूँ । 100 करोड़ शाबर मंत्रो की रचना सिद्ध नवनाथ भगवान ने किया हुआ है परंतु आज हमें बड़े मुश्किल से 10 हजार मंत्र भी देखने नहीं मिलते है । इस दुर्भाग्य को मिटाना अब तो असंभव है,फिर भी हमें प्रयास करना चाहिए ताकि कुछ मंत्रो को प्राप्त करके हमें इस कलयुग में प्रत्यक्ष लाभ हो । वैदिक और तांत्रोत्क मंत्रों के जाप से सब कुछ संभव तो है फिर उन्हें सिद्ध करने में वर्षो लग जाता है,इसलिए शाबर मंत्र का जाप करके लाभ उठाना उचित है ।
आज का यह साधना विर-वैताल के प्रत्यक्षिकरण से है,वेताल को प्रत्यक्ष करके उनसे कई प्रकार के कार्य पूर्ण करवाये जा सकते है । वेताल एक प्रकार से भूतो का राजा माना जाता है,हमारे देश में कई ऐसे साधक है जो वेताल को सिद्ध किये हुए है परंतु वह लोग दुनिया के सामने आकर लोककल्याण करना उचित नहीं समजते है । मुझे बहोत ख़ुशी है इस बात की,के आनेवाले समय में इस ब्लॉग के पाठकों में से किसी ना किसी पाठक के पास या कह सकते है किसी साधक के पास अवश्य ही वेताल सिद्धि संभव हो सकती है ।
वेताल एक प्रचंड शक्ति है जो संसार के समस्त प्रकार के भय का नाश करने हेतु एक महान सिद्धि है । इसके माध्यम से षटकर्म भी संभव है,समस्त प्रकार के रोगों का निवारण वेताल से संभव है । यह मंत्र विधान संसार के किसी भी किताब में आपको देखने नहीं मिलेगा,यह मंत्र विधान गोपनीय है और आज भी गाँव के लोगो के पास सुरक्षित है । मेरा ध्येय है के इस मंत्र विधान से आपको भी परिचित होना चाहिए और हो सके तो जनकल्याण हेतु आगे आना चाहिये ।
आज के समय में कई तांत्रिको ने मंत्र बेचकर विद्या का नाश किया है,जिससे कई प्रकार के मंत्र आज शक्तिहीन होते जा रहे है । मंत्रो को जाग्रत रखना आज के समय का आवश्यक कर्म है,आज अगर हम मंत्र विद्या को संभालकर रखे तो भविष्य में यह विद्या कई पीढ़ियों के काम आयेगी । एक डर है आजके साधक वर्ग में जिसे निकालना जरुरी है,सभी साधक मित्रो को लगता है के मैं आज से मंत्र जाप प्रारंभ करु और 11 दिन के साधना में 11 वे दिन ही शक्ति सामने प्रगट हो और जब वह शक्ति साधक के सामने प्रत्यक्ष नहीं होती है तो साधक वह साधना छोड़ देता है । उसे लगता है अगर मैं फिर से साधना करु और मुझे साधना में सफलता नहीं मिले तो मैं क्या करूँ,यही तो एक प्रकार का डर है जो एक साधक को साधना में सफल नहीं होने देता है । जैसे मैंने कहा है के बिर-कंगन 21 दिनों में जाग्रत होता है परंतु ना हो तो क्या करे? क्या साधना करना छोड़ दिया जाये । यह मूर्खता है,जब हम किसी साधना को प्रारम्भ करके कुछ दिनों बाद असफलता के कारण छोड़ देते है । बहोत से साधक को 21 दिनों में सफलता मिला है,हो सकता है किसिको कुछ समय ज्यादा साधना करनी पड़े तो हमेशा मेहनत करने का तय्यारी करना जरुरी है ।
।। बिस्मिल्लाह रहेमाने राहीम अहमद जागे महम्मद जागे,पीर सुल्तान जागे दिल्ली का बादशाह जागे,उलटा बिर हनुमान जागे,×××××××जिंन-जिन्नातो को जगाने के लिए जागे,×××××××××××× देश ××××× का इल्म सच्चा,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति,चलो मंत्र ईश्वरी वाचा ।।
जैसे यह एक मंत्र है जिससे जिन सिद्ध होता है,यह मंत्र 41 दिनों तक जाप करने से संभव है,परंतु इतना तिष्ण मंत्र जाप करने के बाद भी जिन 41 दिनों में ना आये तो क्या किया जाए? इसमे कोई भी दूसरा विकल्प नहीं है,सिर्फ एक ही रास्ता है “साधना पुनः करना है और मेहनत करना जरुरी है,अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होना संभव है”। साधना सिद्धि हेतु दीवानगी जरुरी है,वो मोहब्बत होनी ही चाहिये कुछ पाने की के हम सब कुछ प्राप्त कर सके ।
एक किसान गेहू का बीज जमींन में डालता है और आनेवाले चार महीनो तक खेत में मेहनत करता है तब जाकर कहा उसको अपने खेत में फसल देखने मिलती है,अच्छी फसल देखने के लिए उसको रोज खेत में जाकर 6-7 घंटे तक मेहनत करना पड़ता है । कभी कभी नैसर्गिक कारणों के वजेसे उसकी फसल भी बेकार हो जाती है परंतु वह हारता नहीं है ।अगर इस वर्ष अच्छी फसल नहीं हुयी तो अगले वर्ष अच्छी फसल प्राप्त करने की उम्मीद में वह फिर से अच्छेसे मेहनत करता ही है । परंतु हमारे साधक मित्र 11 दिनों में कुछ मुश्किल से 1-2 घंटे तक जाप करते है और जब सफलता ना मिले तो साधना,मंत्र,तंत्र,यन्त्र ओर गुरु के प्रती भी अविश्वास रखते हुए मन में दिल से गालिया देते है या फिर सब क्रिया को पाखंड मानते है ।
सबसे से पहिला बात ये दिमाग में डाल दो,खुद को साधक या तांत्रिक समझकर साधना करने से अच्छा तो खुद को किसान समझकर मंत्र साधना विधान किया करो । मेहनत और लगन से किया जाने वाला कोई भी कर्म निष्फल नहीं होता है,1-2 घंटे मंत्र जाप करने से अच्छा 3-4 घंटे जाप करने का कोशिश किया जाए तो बेहतर है । किसान की एक वर्ष की फसल तो उसको कुछ पैसा देती है,जिससे उसका 1-2 वर्ष तक घर चल जाता होगा परंतु आप अगर किसी भी एक साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त करलो तो आपका पूर्ण जीवन अच्छा हो जायेगा । फेसबुक-यू-ट्यूब-व्हॉट्स अप के अघोरी तांत्रिक बाबा लोगो के नखरे झेलने से अच्छा तो स्वयं मेहनत करो और जीवन को सुखमयी बनाते हुए समाजकल्याण के ओर एक कदम आगे बढ़ाओ । मैंने भी आज लिखने में मेहनत किया है और मुझे लग रहा है के आप यह आर्टिकल पढ़ने के बाद मेरा ये छोटासा मेहनत बेकार नहीं जायेगा ।

साधना विधान:-

यह साधना किसी भी सोमवार से प्रारंभ कर सकते है और यह साधना सिर्फ रात्री में ही किया जाता है । साधना में एकांत का आवश्यकता है,रुद्राक्ष माला से जाप करना है ।आसन और वस्त्र लाल रंग के हो या काले रंग के हो,साधना से पूर्व शिव जी का पूजन अवश्य करे,तेल का दिया ही लगाए, तेल कोई भी चलेगा,उग्र सुगंध से युक्त अगरबत्ती का इस्तेमाल करे,रोज रात्री में 11 माला जाप 21 दिनों तक करने का विधान है,यह दक्षिणमुखी साधना है इसलिए दक्षिण दिशा में मुख करके जाप करे,साधना काल में वेताल के दर्शन हेतु रोज एक गुलाब का फूल अपने पास रखे और जब वेताल का दर्शन हो तो वह फूल उसे भेट करे ।

वेताल मंत्र:-

।। ॐ नमो आदेश गुरूजी को,मसान में रमता रात में जगता भूतो का राजा मेरे गुरु के विद्या से चलके आना,ना आये तो राजा तेरा हुकूम ना चले,दुहाई गुरु गोरखनाथ की,मेरी भक्ति गुरु ××××× की शक्ति,चलो मंत्र ईश्वरी वाचा ।।


मैंने इस मंत्र में एक शब्द गोपनीय रखा है और वह शब्द योग्य साधक को मै देने का वचन देता हूं परंतु किसी भी अयोग्य साधक को यह मंत्र नहीं दिया जाएगा । जब भी किसी योग्य साधक को मुझसे मंत्र प्राप्त करना हो तो मुझे ई-मेल करे blackmagicindia@hotmail.com पर,मैं साधक को एक छोटासा प्रश्न पुछूगा जिसका जवाब देते ही उसको गोपनीय शब्द बता दिया जायेगा । मैं इस गोपनीय शब्द को बताने के लिए आपसे कोई एक पैसा नहीं ले रहा हूँ । इसलिए चिंता ना करे और सवाल कोई ज्यादा कठिन नहीं है

Navgraha dosh Nevaran Chitramasta Puja sadhna yantra tantra mantra in hindi

नवग्रह दोष निवारण (छिन्नमस्ता साधना).

नाथ पंथ सहित बौद्ध मताब्लाम्बी भी देवी की उपासना करते हैं, भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा वैभव की प्राप्ति, बाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है, इनकी सिद्धि हो जाने पर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता, दस महाविद्यायों में प्रचंड चंड नायिका के नाम से व बीर रात्रि कह कर देवी को पूजा जाता है देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है छिन्नमस्ता देवी शत्रु नाश की सबसे बड़ी देवी हैं,भगवान् परशुराम नें इसी विद्या के प्रभाव से अपार बल अर्जित किया था,गुरु गोरक्षनाथ की सभी सिद्धियों का मूल भी देवी छिन्नमस्ता ही है.देवी नें एक हाथ में अपना ही मस्तक पकड़ रखा हैं और
दूसरे हाथ में खडग धारण किया है देवी के गले में मुंडों की माला है व दोनों और
सहचरियां हैं देवी आयु, आकर्षण,धन,बुद्धि मे वृद्धि एवं रोगमुक्ति व शत्रुनाश विशेष रूप से करती है.
देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है.
स्तुति:-
ll छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम, प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम, पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम, दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम, दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम, अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम, डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत: ll
देवी की कृपा से साधक मानवीय सीमाओं को पार कर देवत्व प्राप्त कर लेता है.गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए देवी योगमयी हैं ध्यान समाधी द्वारा भी इनको प्रसन्न किया जा सकता है.इडा पिंगला सहित स्वयं देवी सुषुम्ना नाड़ी हैं जो कुण्डलिनी का स्थान हैं.देवी के भक्त को मृत्यु भय नहीं रहता वो इच्छानुसार जन्म ले सकता है.देवी की मूर्ती पर रुद्राक्षनाग केसर व रक्त चन्दन चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है.महाविद्या छिन्मस्ता के मन्त्रों से होता है आधी व्यादी सहित बड़े से बड़े दुखों का नाश कर देती है.
श्रीभैरवतन्त्र में कहा गया है कि इनकी आराधना से साधक जीवभाव से मुक्त होकर शिवभाव को प्राप्त कर लेता है.

साधना विधि:-
सर्वप्रथम देवी का प्रचंड चंडिका मंत्र “ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा” को बोलते हुए अपने शरीर पर साधना मे बैठकर पानी के छीटे लगाये.
फिर नवग्रह दोष निवारण हेतु माँ से प्रार्थना करे और दीये हुए मंत्र का जाप मंगलवार से नित्य नौ दिनो तक ग्यारह माला (रुद्राक्ष माला) जाप करे.दिशा-उत्तर,आसन-वस्त्र-लाल रंग के,समय रात्री मे 9 बजे के बाद और दसवे दिन 108 बार घी की आहुति  मंत्र बोलकर देना है.
यह विधान पूर्ण होते-होते ही साधक को कई अनुभुतिया होती है परंतु घबराना नही चाहिये.साधना समाप्ती के बाद नवग्रह दोष का निवारण होता है.

माँ छिन्नमस्ता नवग्रहदोष निवारण मंत्र:-
llॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुमll
(om shreem hreem aim kleem vam vajravairochiniye hoom)

मंत्र जाप के बाद देवी की स्तुती करे जो दि हुयी है.मंत्र का सही उच्चारण करने से ही लाभ प्राप्त होगा अन्यथा नही होगा.साधना काल मे ज्यादा से ज्यादा मौन रहेने से तीव्र अनुभुतिया प्राप्त होती है,हवन के समय मंत्र के आखरी मे “स्वाहा” लगाना नही भूलना चाहिये.
माँ चिंतापुरिनी आपका भला करे…..

Satru stan prayog mantra tantra yantra sadhna in hindi

शत्रु स्तंभन प्रयोग.

तंत्र क्षेत्र मे सभी समस्यायों को कैसे निपटा जाये यह भली भांति जानना जरुरी  हैं पर जानने और करने मे कोसो की दुरी होती हैं ,षट्कर्म मे से एक कर्म स्तम्भंन्न भी हैं और स्तम्भनं की प्रमुख देवी भगवती बल्गामुखी के स्वरुप से कौन
नही परिचित होगा , जिसे कोई भी उपाय ना सूझे तो विधिवत ज्ञान ले कर इस विद्या का प्रयोग अपने रक्षार्थ करें निश्चय ही उसे लाभ होगा . पर न तो इस विद्या का ज्ञान देने वाले और न ही उचित प्रकार से प्रयोग करने वाले आज प्राप्त हैं और् सबसे
बड़ी समस्या यह हैं की इन प्रयोगों को
करने के लिए कैसे समय निकाला जाए .आज समय की कितनी कमी हैं यह तो
हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं
ही . साधना क्षेत्र मे दोनों तरह के विधान हैं लंबे समय वाले और कम समय वाले भी ..साधारणतः यह कहा जाता हैं की सबसे पहले कम समय वाले विधानों की तरफ गंभीरता से देखा जाना चाहिये और जब परिणाम उतने अनुकूल ना हो जितनी
आवशयकता हैं तब बृहद साधना पर ध्यान दे यह उचित भी है क्योंकि जहाँ सुई का काम हो वहां तलवार
की क्या उपयोगिता .. और तंत्र मंत्र के आधारमे एक महत्वपूर्ण अंग या विज्ञानं हैं
यन्त्र विज्ञानं ..अभी भी इसका एक
अंश मात्र भी सामने नही आया हैं . एक
से एक अद्भुत गोपनीय और दाँतों तले
अंगुली दवा लेने वाले रहस्यों से ओत प्रोत रहा हैं.यह विज्ञानं.हमारे द्वारा अनेक प्रयोग जो दिए जाते रहे हैं वह अनेको मनिशियों
,तंत्र आचार्यों और उच्च तांत्रिक ग्रंथो मे बहुत प्रशंषित रहे हैं और सैकडो ने उनके प्रयोग किये हैं और लाभ भी उठाया हैं , आवश्यकता बस इस बात की हैं की यदि समय हो तो क्यों न इन प्रयोगों की करके भी देखा जाये जो अनुभूत और सटीक रहे हैं .
आज यहा अदभुत शाबर मंत्र दे रहा हू-

ll जल बाँधु जल-वायु बाँधु,बाँधु जल के तिर,पाचो काला कलवा बाँधो,बाँधु हनुमतं वीर,सहदेव तेरी लाकडी,अर्जुन तेरो बाण,अमुक की गती थाम दे,यती हनुमान की आन,शब्द साँचा-पिंड काँचा,मेरे गुरू का इल्म साँचा,फुरो मंत्र,इश्वरो वाचा,दुहाई गोरखनाथ की ll

मंगलवार से 7 दिन तक रात्री मे 9 बजे दक्षिण दिशा मे मुख करके रोज 108 बार मंत्र का जाप करना है तो मंत्र सिद्ध
होगा.जब शत्रु पर प्रयोग करना है तब एक मुठ्ठी काले उडद पर अमुक के जगह शत्रु का नाम लेकर 108 बार मंत्र बोले और उडद को शत्रु के घर मे या घर के दिशा मे फेक देना है,येसा करने से शत्रु को बहोत पिडा होता है,उसके गती-मती का स्तम्भण होता है.सिर्फ प्रयोग के समय अमुक के जगाह पर शत्रु का नाम लिजिये,मंत्र सिद्धी के समय नही.

नोट:-किसिका बुरा करने हेतु प्रयोग ना करे अन्यथा परिणाम स्वयम साधक को भुगतना पडेगा

Kamakya mantra tantra yantra sadhna in hindi

कामाख्या मंत्र और तंत्र.

कामाख्या-मन्त्र का महत्त्व ‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार ‘सिद्धि की हानि’ एवं
‘विघ्न-निवारण’ हेतु ‘कामाख्या-मन्त्र’ का जप आवश्यक है। सभी साधकों को सभी देवताओं के उपासकों को ‘कामाख्या-मन्त्र की साधना’ अवश्य करनी चाहिए। शक्ति के उपासकों के लिए ‘कामाख्या-मन्त्र’ की साधना अत्यन्त आवश्यक है। यह ‘कामाख्या-मन्त्र’ कल्प-वृक्ष के समान है। सभी साधकों को एक, दो या चार बार इसका साधना एक वर्ष मे अवश्य करना चाहिए। इस मन्त्र की साधना में चक्रादि-शोधन या कलादि-शोधन की आवश्यकता नहीं है। इसकी साधना से सभी विघ्न दूर होते हैं और शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त
होती है।
‘कामाख्या-मन्त्र’ का विनियोग, ऋष्यादि-न्यास उक्त ‘कामाख्या-मन्त्र’ के विनियोग, ऋष्यादि-न्यासादि इस प्रकार हैं-

।। विनियोग ।।

ॐ अस्य कामाख्या-मन्त्रस्य श्रीअक्षोभ्य
ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द: , श्रीकामाख्या देवता, सर्व- सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोग:।
।। ऋष्यादि-न्यास ।।
श्रीअक्षोभ्य-ऋषये नम: शिरसि,
अनुष्टुप्-छन्दसे नम: मुखे,
श्रीकामाख्या-देवतायै नम: हृदि,
सर्व- सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वाङ्गे।



।। कर-न्यास ।।

त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:,
त्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा,
त्रूं मध्यमाभ्यां वषट्,
त्रैं अनामिकाभ्यां हुम्,
त्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्,
त्र: करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।



।। अङ्ग-न्यास ।।

त्रां हृदयाय नम:,
त्रीं शिरसे स्वाहा,
त्रूं शिखायै वषट्,
त्रैं कवचाय हुम्,
त्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्,
त्र: अस्त्राय फट्।



कामाख्या देवी का ध्यान:-
उक्त प्रकार न्यासादि करने के बाद भगवती कामाख्या का निम्न प्रकार से ध्यान करना चाहिए-
भगवती कामाख्या लाल वस्त्र-धारिणी, द्वि-भूजा, सिन्दूर-तिलक लगाए हैं।भगवती कामाख्या निर्मल चन्द्र के समान उज्ज्वल एवं कमल के समान सुन्दर मुखवाली हैं।भगवती कामाख्या स्वर्णादि के बने मणि-माणिक्य से जटित आभूषणों से शोभित हैं। भगवती कामाख्या विविध रत्नों से शोभित सिंहासन पर बैठी हुई हैं। भगवती कामाख्या मन्द-मन्द मुस्करा रही हैं। भगवती कामाख्या उन्नत पयोधरोंवाली हैं। कृष्ण-वर्णा भगवती कामाख्या के बड़े-बड़े नेत्र हैं। भगवती कामाख्या विद्याओं द्वारा घिरी हुई हैं। डाकिनी-योगिनी द्वारा शोभायमान हैं। सुन्दर स्त्रियों से विभूषित हैं। विविध सुगन्धों से सु-वासित हैं। हाथों में ताम्बूल लिए नायिकाओं द्वारा सु-शोभिता हैं।भगवती कामाख्या समस्त सिंह-समूहों द्वारा वन्दिता हैं। भगवती कामाख्या त्रि-नेत्रा हैं। भगवती के अमृत-मय वचनों को सुनने के लिए उत्सुका सरस्वती और लक्ष्मी से युक्ता देवी कामाख्या समस्त गुणों से सम्पन्ना,
असीम दया-मयी एवं मङ्गल- रूपिणी हैं।

उक्त प्रकार से ध्यान कर कामाख्या देवी
की पूजा कर कामाख्या मन्त्र का ‘जप’ करना चाहिए।’जप’ के बाद निम्न प्रकार से ‘प्रार्थना’ करनी चाहिए।

कामाख्ये काम-सम्पन्ने, कामेश्वरि! हर-प्रिये!
कामनां देहि मे नित्यं, कामेश्वरि! नमोऽस्तु ते।।

कामदे काम-रूपस्थे, सुभगे सुर-सेविते!
करोमि दर्शनं देव्या:, सर्व-कामार्थ-सिद्धये।।



अर्थात् हे कामाख्या देवि! कामना पूर्ण करनेवाली,कामना की अधिष्ठात्री, शिव
की प्रिये! मुझे सदा शुभ कामनाएँ दो और
मेरी कामनाओं को सिद्ध करो। हे कामना
देनेवाली, कामना के रूप में ही स्थित
रहनेवाली, सुन्दरी और देव-गणों से सेविता
देवि! सभी कामनाओं की सिद्धि के लिए मैं
आपके दर्शन करता हूँ।
कामाख्या देवी का २२ अक्षर का मन्त्र ‘कामाख्या तन्त्र’ के चतुर्थ पटल में कामाख्या देवी का २२ अक्षर का मन्त्र उल्लिखित है-

मंत्र:-

ll त्रीं त्रीं त्रीं हूँ हूँ  स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये प्रसीद  स्त्रीं स्त्रीं हूँ हूँ त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा ll



उक्त मन्त्र महा-पापों को नष्ट करनेवाला, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष देनेवाला है। इसके ‘जप’ से साधक साक्षात् देवी-स्वरूप बन जाता है। इस मन्त्र का स्मरण करते ही
सभी विघ्न नष्ट हो जाते हैं।इस मन्त्र के ऋष्यादि ‘त्र्यक्षर मन्त्र’ (त्रीं त्रीं त्रीं) के समान हैं।’ध्यान’ इस प्रकार किया जाता हैमैं योनि-रूपा भवानी का ध्यान करता हूँ, जो कलि-काल के पापों का नाश करती हैं और समस्त भोग-विलास के उल्लास से पूर्ण करती हैं।मैं अत्यन्त सुन्दर केशवाली, हँस-मुखी, त्रि-नेत्रा, सुन्दर कान्तिवाली,
रेशमी वस्त्रों से प्रकाशमाना, अभय और वर-मुद्राओंसे युक्त, रत्न-जटित आभूषणों से भव्य, देव-वृक्ष केनीचे पीठ पर रत्न-जटित सिंहासन पर विराजमाना, ब्रह्मा-विष्णु-महेश द्वारा वन्दिता, बुद्धि-वृद्धि-स्वरूपा, काम-देव के मनो-मोहक बाण के समान अत्यन्तकमनीया, सभी कामनाओं को पूर्णकरनेवाली भवानी का भजन करता हूँ।
  
‘शक्ति’ का महत्त्व:-
‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार साधना और जपादि का मूल ‘शक्ति’ है। ‘शक्ति’ ही जीवन का मूल है और वही ‘इह-लोक’ एवं ‘परलोक’ का मूल है। धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष का मूल भी ‘शक्ति’ ही है। ‘शक्ति’ को जो कुछ दिया जाता है, वह देवी को अर्पीत होता है। जिन उद्देश्यों से दिया जाता
है, वे सभी सफल होते हैं। ‘शक्ति’ के बिना कलि-युग में जो अर्चन करता या करवाता है, वह नरक में जाता है।
गुरु-तत्त्व:-
‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार सदा-शिव ही गुरुदेव हैं। महा-काली से युक्त वे देव सच्चिदानन्द-स्वरूप हैं। मनुष्य-गुरु ‘गुरुदेव’ नहीं हैं, उनकी भावना मात्र हैं। मन्त्र देनेवाला अपने शिरस्थ कमल में गुरु का जो ध्यान करता है, उसी ध्यान को वह शिष्य के शिर में उपदिष्ट करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मनुष्य में ‘गुरुदेव’ की भावना रखना मूर्खता है। मनुष्य-‘गुरु’
मात्र मार्ग दिखानेवाला है, स्वयं ‘गुरु-देव’ नहीं हैं।
ज्ञान की श्रेष्ठता:-
‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार ‘ज्ञान’ से श्रेष्ठ कुछ नहीं है। ‘ज्ञान’ के लिए ही देवता
की उपासना की जाती है।
मुक्ति-तत्त्व:-
‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार ‘मुक्ति’ चार प्रकार की है-
१. सालोक्य,
२. सारूप्य,
३. सायुज्य
और
४. निर्वाण।
‘सालोक्य मुक्ति’ में इष्ट-देवता के लोक में निवास करने का सौभाग्य मिलता है, ‘सारूप्य’ में साधक इष्ट-देवता-जैसा ही बन जाता है, सायुज्य में वह इष्ट-देव की ‘कला’ से युक्त हो जाता है और ‘निर्वाण मुक्ति’ में मन का इष्ट में लय हो जाता है।
मुख्यत: ‘आसुरी व्यक्तित्व’ का लोप होना
ही ‘मुक्ति’ है। ‘मुक्ति देवी’— सनातनी हैं, विश्व-वन्द्या हैं, सच्चिदानन्द-रूपिणी पराऽम्बा हैं और सभी की अभीष्ट कामनाओं की पूर्ति करती हैं।

मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण साधना है,इस साधना मे साधक “कामरुप यंत्र” और “काली हकिक” माला जो रात्री सुक्त के जाप से प्राण-प्रतिष्ठीत हो इनका उपयोग साधना मे करे तो शीघ्र लाभ प्राप्त होता है अन्यथा आप बिना सामग्री के भी साधना कर सकते है.इस साधना की विशेष सामग्री अगर आपको चाहिये तो 1150/-रुपये मे आप प्राप्त कर सकते है

Yogini saber mantra tantra yantra in Hindi

शाबर योगिनी मंत्र.

एक साधक के लिए काल ज्ञान अत्यधिक
आवश्यक है क्यों की सिद्ध योगो मे उर्जा का प्रवाह अत्यधिक वेगवान होता है , विशेष काल मे विशेष देवी देवता अपने पूर्ण रूप मे जागृत होते है. तथा ब्रम्हांड मे शक्ति का संचार स्वतः बढ़ जाता है . साधको के लिए इन विशेष काल मे साधना करने से साधना मे सफलता की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है . इस दिशा मे ग्रहण का समय अपने आप मे साधको के लिए
महत्वपूर्ण है .इस काल मे साधक किसी भी मंत्र जाप को करे तो उस मंत्र और प्रक्रिया से सबंधित योग्य परिणाम प्राप्त करना सहज हो जाता है,जो साधक ग्रहण मे साधना नही कर सकते उनको अमावस्या या पूर्णिमा के दिन साधना अवश्य करनी चाहिये.यु तो इस काल मे कोई भी साधना
या मंत्र जाप किया जा सकता है लेकिन कुछ विशेष शाबर साधनाए ग्रहण काल के लिए ही निहित है , जिसे मात्र और मात्र ग्रहण के समय ही किया जाता है . इस क्रम मे ऐसे कई दुर्लभ विधान है जो की साधक को सफलता के द्वार तक ले के जाता है . वस्तुतः हमारा जीवन इच्छाओ के आधीन है , और अगर मनुष्य की इच्छाए ही ना रहे तो फिर जीवन ही ना रहे क्यों की इच्छा मुख्य त्रिशक्ति मे से एक है ,क्रियाज्ञानइच्छा च शक्तिः . अपनी इच्छाओ की पूर्ति करना किसी भी रूप मे अनुचित नहीं है . तंत्र तो श्रृंगार की प्रक्रिया है, जो नहीं प्राप्त किया है उसे प्राप्त करना और जो प्राप्त हुआ है उसे और भी निखारना. यु भी तन्त्र दमन का समर्थन नहीं करता. अपनी योग्य इच्छाओ की साधक पूर्ति करे और अपने आपको पूर्णता के पथ पर आगे बढ़ने के लिए कदम
भरता जाए . ग्रहण काल से सबंधित कई दुर्लभ विधानों मे इच्छापूर्ति के लिए भी विधान है . अगर इन विधानों को साधक विधिवत पूर्ण कर ले तब साधक के लिए निश्चित रूप से सफलता मिलती ही है. ऐसे ही विधानों मे से एक विधान है ‘ तीव्र योगिनी इच्छापूर्ति प्रयोग’.
जो की आप सब के मध्य इस ग्रहणकाल को ध्यान मे रखते हुए रख रहा हू .
इस साधना के लिए साधक को अपने आसान की ज़मीं को गाय के गोबर से लिप दे और उस पर आसान लगा कर बैठ जाए.अगर साधक के लिए यह संभव नहीं हो तो वह भूमि पर बैठ जाए .यह साधना निर्वस्त्र हो कर करे , अगर यह संभव नहीं है तो सफ़ेद वस्त्रों को धारण करे .
साधना कक्ष मे और कोई व्यक्ति ना हो तो
उत्तम है . साधक अपने सामने तेल का बड़ा दीपक लगाए और ६४ योगिनी को मन ही मन प्रणाम करते हुए मिठाई का भोग लगाये और अपनी इच्छा को साफ साफ ३ बार दुहराए तथा योगोनियो से उसकी पूर्ति के लिए प्रार्थना करे . इसके बाद साधक निम्न मंत्र का जाप प्रारंभ कर दे . इसमें किसी भी प्रकार की माला की ज़रूरत नहीं है फिर भी अगर साधक
चाहे तो रुद्राक्ष की माला उपयोग कर सकता है. साधक को यह प्रक्रिया ग्रहण काल शुरू होने से एक घंटे पहले ही शुरू कर देनी चाहिए तथा जितना भी संभव हो जाप करना चाहिए, यु उत्तम तो ये रहता है की साधक ग्रहण समाप्त हो जाने के बाद भी एक घंटे तक जाप करता रहे .

योगिनी मंत्र:-
ll ओम जोगिनी जोगिनी आवो आवो मेरा कल्याण करो मेरी इच्छा पूरो,आण दुर्गा माई की,गुरू गोरखनाथ बाबा की दुहाई  ll

मंत्र जाप की समाप्ति पर मिठाई का भोग
स्वयं ग्रहण करे तथा स्नान करे . साधक की इच्छा शीघ्र ही निश्चित रूप से पूरी होती है .यहा पर आज पहिले बार आप सभी को सही मंत्र प्राप्त हो रहा जो अन्य ब्लौग पर गलत दिया हुआ है 

mahakali saber mantra yantra tantra sadhna in hindi

महाकाली प्रत्यक्ष दर्शन (शाबर मंत्र साधना).

माँ महाकाली के दर्शन प्राप्त करना प्रत्येक साधक का स्वप्न होता है और उनके दर्शन से कोई भी व्यक्ती फिर सामान्य व्यक्ती नही रहेता है.यह तो पुण्योदय है उन साधक वर्ग का जो इस जीवन मे कोई न कोई किसी भी प्रकार से महाकाली साधना संपन्न करते है,क्युके बिना पुण्य जाग्रत हुए कोई भी साधक महाकाली साधना नही करता है.ब्रम्हान्ड मे कूल 52 स्थान है जिसमे 48 स्थान महाकाली जी के है और बचे हुए 4 स्थानो मे अन्य देवी/देवताओ का स्थान माना जाता है.तो सोचिये महाकाली साधना करने से कितने लाभ प्राप्त होते है,महाकाली साधना से साधक अपना पूर्ण जीवन सदैव निडर होकर और प्रसन्नता के साथ बिना रोग,दोष,बाधा,पिडा,दरीद्रता एवं भय के जीता है.जो काली साधना करते है उनके लिये तो तंत्र के क्षेत्र मे कुछ भी प्राप्त करना असंभव नही है और काली साधना करने वालो मे मैने आजतक सबसे ज्यादा आत्मविश्वास देखा है.
कई साधको को यह भ्रम है की महाकाली एक तिश्ण देवी है और इनकी साधना मे कोई भी गलती हो जाती है तो विपरीत परिणाम भोगना पडता है.जबकी येसी बात नही है,माँ तो अत्यन्त सौम्य और सरल महाविद्या है.जिनका रुप भले ही विकराल हो परंतु माँ के हृदय मे करुणा, दया, ममता, स्नेह और अपने भक्तो के प्रती अत्याधिक ममत्व है.उनका भयंकर स्वरुप अपने भक्तो के शत्रुओ हेतु है जो माँ के पुत्रो को कष्ट देना चाहता है.माँ की कृपा से सभी प्रकार की समस्याये कोसो दूर भाग जाती जो फिर से आने की कोशिश भी नही करती है.कालीदास जी को माँ का ममत्व प्राप्त हुआ और वह सारे संसार मे प्रसिद्ध हुए.श्री रामकृष्ण परमहंस जी का नाम आज कौन नही जानता,उनका उपासना पद्धती आज तक गोपनिय रहा है.परमहंस जी ने माँ का ममत्व प्राप्त करने हेतु कई प्रकार के मंत्रो का जाप किया परंतु उन्हे “शाबर मंत्र जाप” से माँ के दर्शन प्राप्त करने हेतु पूर्ण सफलता प्राप्त हुयी.आज भी लोग खोज मे लगे हुए है के आखिर वह कौनसा शाबर मंत्र था जिससे उन्हे माँ के ममत्व स्वरुप का दर्शन हुआ.उन्हे महाकाली पूर्णरुपेण सिद्ध थी,एक बात बताता हू सिद्धी और दर्शन मे फर्क है.दर्शन होने का अर्थ सिद्धी प्राप्त करना नही है,यह दोनो विषय भिन्न है.उदाहरन हेतु मुझे माँ के दर्शन प्राप्त हुए परंतु माँ सिद्ध नही हुयी क्युके उन्हे सिद्ध करने हेतु कठिन तपस्या की आवश्यकता है.
यहा पर जो साधना दे रहा हू इसमे माँ के “तांत्रिक विग्रह”का महत्व मंत्र से भी ज्यादा है और बिना विग्रह के साधना करने से लाभ तो मिलेगा परंतु दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य जो अत्यन्त दुर्लभ है उसे प्राप्त करने हेतु कई वर्ष लग जायेगे.यह सिर्फ एक किसी धातु का विग्रह नही बल्की मेरे लिये और उनके सच्चे भक्तो के लिये जो हृदय से उनसे प्रेम करते है उनके लिये तो “स्वयम माँ है”.इस विग्रह को निर्माण करना कठिन क्रिया है,जब धातु को अग्नी मे डालकर उसका पानी बनाया जाता है विग्रह निर्माण हेतु तब “नवार्ण मंत्र” का जाप किया जाता है.उसके बाद गरम धातु को साचे मे आकार देने के लिये जब प्रयोग मे लाया जाता है तब “रावण कृत अघोर काली मंत्र का जाप किया जाता है.जब विग्रह बन जाये तब उसकी प्राण-प्रतिष्ठा शस्त्रोक्त मंत्रो से होती है,उसके बाद “कामकाली साहस्त्राक्षरी” मंत्रो से विग्रह का अनार के रस से अभिशेक किया जाता है.अगले क्रिया मे काली हल्दी का लेप करके गुडहल का पुष्प चढाकर कुमकुम से तान्त्रोत्क न्यास विधी कर्म करके अंग-पुजन किया जाता है.अब आखरी क्रिया मे “शाबर महाकाली जागरण मंत्र’ से विग्रह को जागृत किया जाता है.इस प्रकार से “तान्त्रोक्त महाकाली विग्रह” का निर्माण कार्य होता है.बाजार से विग्रह खरीदकर विग्रह का प्राण-प्रतिष्ठा करके किसी को देने से विग्रह प्रदान करने वाले को माँ के तान्त्रोत्क विग्रह के नाम पर पैसा खाने का भी दोष लगता है.इसलिये प्रामानिक विग्रह देना ही उचित है अन्यथा माँ तो सब कुछ देख रही है और उनके नाम पर व्यापार करके लोगो को ठगने वाले को वो बिना दंड दीये छोडेगी नही,येसे व्यक्ती पर माँ की अवकृपा होती है जिससे उसका जीवन निरंतर समस्याओ से भरपूर हो जाता है.
येसा दुर्लभ विग्रह हमसे अवश्य ही प्राप्त करे और जीवन के समस्त बाधाओ पर विजय प्राप्त करे.हमे सम्पर्क करने से आपको माँ के विग्रह का उचित मूल्य और पूर्ण “शाबर महाकाली दर्शन मंत्र” प्राप्त होगा.मैने इसलिये पूर्ण मंत्र अपने आर्टिकल मे नही डाला क्युके इंटरनेट पर चोरो की कोई कमी नही है.मेरा प्रत्येक आर्टिकल चोरी करके लोग अपने नाम से किताबो मे,फेसबूक पर,ब्लौग पर एवं वेबसाइट पर छाप रहे है और इस बार मैने पूर्ण मंत्र नही लिखा.इस मंत्र मे 2-2 शब्द गायब कर दीये है ताकी आर्टिकल चोरी नही किया जाये.अब बात करते है साधना विधी की जो हम सभी के लिये महत्वपूर्ण है.

यह साधना अत्यंत महत्वपूर्ण साधना है,जो आज तक गोपनीय रहा है.आज उस गोपनीय रहस्य को मै आपके सामने उजागर कर रहा हू.सभी साधना मे
सफलता देने मे इस साधना का आपको प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होगा,यह “महाकाली प्रत्यक्ष दर्शन” साधना है और जब माँ आपको दर्शन देगी तो आपको उनसे यह
प्रार्थना करनी है “हे माँ भगवती मुझे
सभी साधनामे सफलता और पूर्ण सिद्धि प्रदान करे”,निच्छित ही आपका प्रार्थना माँ स्वीकार करेगी और आपका अमूल्य जीवन तांत्रिक सिद्धियो के लिये महत्वपूर्ण होगा.
यह मेरा अनुभूतित साधना है जो केवल मात्र 31 दिन का है और इस साधना मे सिर्फ 1 माला मंत्र का जाप रात्री के समय मे 11:36 से 12:36 मध्य के समय मे करना आवश्यक है,पहिले दिन माताराणी को पंच-मेवा युक्त खीर का भोग लगाये और साथ मे कपूर का ज्योत भी जला दीजिये.माँ के तान्त्रोत्क विग्रह को सामने लाल कपडे पर स्थापित करके सामान्य पद्धती से पुजन करना है जिसके लिये किसी भी प्रकार के कर्मकान्ड की आवश्यकता नही है .
शाबर महाकाली मंत्र का जाप करने से पूर्व सामान्य रुप से गणेश+गुरुपूजन अवश्य करे लीजिये (जिनके गुरू ना हो वह शिव पुजन करे),इस विधान मे आपको साधना से पूर्व महाकाली जी के “तान्त्रोत्क विग्रह” का व्यवस्था पहिले ही कर लेना पड़ेगा क्यूके साधना मे माँ का तान्त्रोक्त विग्रह होना आवश्यक है और साधना के समय आप माँ को नीम के पत्तों का चोला उनकी कमर मे बांधना है ताकि उनका अंग ढग दिया जा सके अन्यथा माँ को हमने क्रोधित होते हुये भी देखा है इसलिये नीम का पत्तों का चोला पहनाना आवश्यक है,नीम के चोले का निर्मिति करना कोई कठिन कार्य नहीं है,नीम के पत्ते लाकर उनको लाल रंग
के धागे मे पिरो लीजिये जैसे हम फूलो के हार बनाते है उसी तरहा से.
1-नीम का चोला चढ़ाये,
2-भोग लगाये,
3-कपूर का ज्योत लगाये,
4-108 बार मंत्र का जाप (मतलब एक माला जाप) काली हकीक/रुद्राक्ष माला से करे.
यह सिर्फ चार क्रियाये महत्वपूर्ण है जिन्हे ध्यान मे रखना है.

मंत्र-
॥ श्री नरसिंग हरी,हर काली महाकाली ब्रम्हा की साली,अगन पवन ********* सारी,*******************महाकाली ॥

साधना तीन दिन का है आखरी दिन माँ अवश्य ही दर्शन देगी परंतु आपका अटूट विश्वास और धैर्य जरुरी है क्युके माँ दर्शन देने से पूर्व साधक के विश्वास और धैर्य की परीक्षा लेती है.एक बार मे सफलता ना मिलने पर हिम्मत ना हारे और सच्चे पुत्र के तराहा माँ के दर्शन हेतु ज्यादा से ज्यादा प्रयासरत रहे,माँ आपको निराश नही करेगी यह मै अपने अनुभव की बात बता रहा हू.साधना मे दिशा-उत्तर,आसन-वस्त्र लाल रंग के हो,माला रुद्राक्ष/काली हकीक की हो.साधना मंगलवार से शुरू करनी है.आपसे जैसे भी संभव हो समय निकालकर साधना अवश्य सम्पन्न कीजिये.
माताराणी आपको दर्शन प्रदान करे यही कामना करता हु इसीके साथ आपके लिये हृदय से मंगलकामना करता हू….

“तान्त्रोत्क महाकाली विग्रह” का महत्व:-
यह कोई साधारण विग्रह नही है,इस विग्रह पर ध्यान क्रिया करने से साधक को अखन्ड ध्यान का प्राप्ति होता है.घर मे स्थापित करने से वास्तुदोष/गृहदोष समाप्त होने लगता है,अभीचार कर्म जिसे तांत्रिक बाधा दोष कहेते है और काला जादु भी कहेते है उसका असर समाप्त होता रहेता है.लक्ष्मी बंधन दोष जिसके वजेसे धन प्राप्ती मे आनेवाली अडचने और घर मे पैसा/रुपया ना टिकना ये सब खत्म होते जाता है.लंबे समय से चल रही बिमारियो मे स्वास्थ लाभ देखने मिलता है.शत्रुओ से होने वाली हानी मे बदलाव देखने मिलता है.ये सारे लाभ विग्रह स्थापित करने से प्राप्त होते है भलेही आप साधना संपन्न करे या ना करे और इस विग्रह के सामने कोई भी किसी भी प्रकार का महाकालि मंत्र जाप करे तो शीघ्र परिणाम स्वरुप फल प्राप्ती होता होता है.
आप विग्रह प्राप्त करने के जानकारी हेतु मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते है.

जय काली महाकाली माई कृपा करो,भक्तो को अभय वरदान प्रदान करो…….