Yakshini Sadhna

Hereby is the conversation detail of Lord Shiva and Mahamuni Duttatreye.
Shiva said-“Mahamuni Duttatreye!Listen care fully the procedure of yakshini sadhna, by performing mere simple chanting and process all desires of human being are fulfilled”.
Time: when Brihaspati (Jupiter) and Shukra (Venus) are not astha as per panchang one could see. And it’s a poornima of Ashada masa . when moon is powerfull one can start from Pratipada till completion of one month.
Place: Complete silence and on or below Bilva vriksha tree.
Prior to sadhna: Pacify and make lord shiva happy by performing 5000 japas of Mahamrityunjaya Mantras. Than do the request invitation of Lord Kubera as well.
Rudra Puja by shodashopchar before mrityunjaya mantra chanting.
Yaksharaj Kuber Nivedana Puja:
“OM YAKSHRAJ NAMASTUBHYAM SHANKAR PRIYAH BANDHAVAH
EKAM ME VASHMAM NITYAM YAKSHINIM KURUTE NAMAH”
Kuber Prayog:
“ITHI MANTRAM KUBERASYA JAPED..ASHTOTTARAM SHATAM
BRIHMACHARYEN MOUNEN HAVISHYASHI BHAVEDDIVA”
Means: lord kubera, just give a yakshini for me. I worship you and chant your mantra.
108 kubera mantra chanting as above. Total brihmmacharya and satvik food during total sadhna period of 1 month.
Now comes the time of Yakshini Puja
Keep different types of food as per your need of a particular character yakshini.
Start chanting 30 malas per night , of following yakshini mantra:
“OM HREEM KLEEMg AIMg SHREEM MAHAYAKSHINYEYE SARVESHWAR PRADATREYE NAMAH”
During sadhana time of one month sadhak should offer food to three virgin girl children.
Yakshini on being invited in form of SurSundari
Same procedure as above. Dhoop should be of guggle and always keep water solution of sandal powder with you.Chanting should be done in all three vital sandhyas. And total mantras to be chanted during sadhna are 1000.
Mentionable: If a sadhak starts his sadhna with an assumption of acceptance of yakshini as sister, she will give you some extra utilities clothing..if as mother some vital dravya she gives and if as a wife than she fulfills all your desires of wealth, pleasure etc.
But one must strictly remain away from intercourse and even such ideas for any other female

Mahamritunjay mantra meaning in Hindi

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ

ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्. उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मा मृतात्

“समस्‍त संसार के पालनहार, तीन नेत्रो वाले शिव की हम अराधना करते है, विश्‍व मे सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव, मृत्‍यु न कि मोक्ष से हमे मुक्ति दिलाएं”

त्रि – ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।

यम – अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।

ब – सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।

कम – जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।

य – वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।

जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।

म – प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।

हे – प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।

सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।

ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।

न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।

पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।

ष्टि – अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।

व – पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।

र्ध – भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।

नम् – कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है।

उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है।

र्वा – स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।

रु – भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।

क – धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।

मि – अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।

व – मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।

ब – वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।

न्धा – अंशु आदित्यद का घोतक है । वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।

नात् – भगादित्यअ का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।

मृ – विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।

र्त्यो् – दन्दाददित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।

मु – पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठै भगा में स्थित है ।

क्षी – पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है । नाभि स्थिल में स्थित है।

य – त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है । गुहय भाग में स्थित है।

मां – विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है।

मृ – प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।

तात् – अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।

जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों ) की शक्तियाँ हैं । उसी प्रकार अलग – अल पदों की भी शक्तियॉं है।
त्र्यम्‍‍बकम् – त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।
यजा- सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है ।
महे- माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।
सुगन्धिम् – सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।
पुष्टि – पुरन्दिरी शकित का द्योतक है जो मुख में स्थित है।
वर्धनम – वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है ।
उर्वा – ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है ।
रुक – रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है।
मिव रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है ।
बन्धानात् – बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है ।
मृत्यो: – मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है।
मुक्षीय – मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है ।
मा – माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है ।
अमृतात – अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।

शक्ति षट्कात्म क अर्थ
त्र्यम्ब कम् – सर्वज्ञशक्ति ।
यजामहे – नित्यक तृप्ति ।
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् – अनादि बोधित शक्ति ।
उर्वारुकमिव बन्ध्नात् – स्वोतंत्रता शक्ति।
मत्योरर्मुक्षीय – नित्यनभलप्ता शक्ति।
मामृतात – अचित्यी अनन्ति शक्ति।

चारों चरणों का अर्थ

त्र्यम्बशकं यजामहे – अम्बिका शक्ति सहित त्र्यम्ब केश का द्योतक है जो पूर्व दिशा में प्रवाही शक्ति में स्थित है ।

सुगन्धि पुष्टि वर्धनम – वामा शक्ति सहित मृत्यु्जय का द्योतक है जो दक्षिण दिशा में प्रवाही शक्ति में स्थित है ।

उर्वारुकमिव बन्ध नात् – भीमा शक्ति सहित महादेवेश का द्योतक है जो पश्चिम में प्रवाहित शक्ति में स्थित है ।

मृत्योर्मुक्षीय मामृतात- द्रीपदी शक्ति सहित संजीवनीश का द्योतक है जो उत्त र दिशामें प्रवाहित शक्ति में स्थित है।
इस तरह चारों दिशाओं मे यह मंत्रा करता है।